Yaariyan
मेरी किताब का वो सबसे हसीन किस्सा है, जिसमे कुछ, यारों के बारे में लिखा है, लड़कपन की उम्र से निकले थे सब घर से दूर, फिर सांज आज जब घर लौटे, थकना भी एक हिस्सा है... नहीं होती अब लंबी फोन पर उनसे बातें, फुर्सत की कमी, से नम होती हैं आँखें, यादों के खत लिखकर ही पूछ लेते हैं हाल-चाल, भागते-दौड़ते दोस्तों से पूछने को ना रहे कोई सवाल... क्या हुआ अगर, जो दुर्मिल अब ताल्लुकात हैं, झुर्रियाँ और सफेद बालों में उलझी, कई अनकही बात हैं, एक ज़माना था, जब सारे तितलियों के दिवाने थे, सिर्फ पागलपन ही नहीं, प्रेम के भी फसाने थे... कुछ दर्द अपनाते, कुछ अपना सुनाते, बातों बातों में, अपना-पराया भूल जाते, हँसकर यूँही घंटो कर ली बातें, अंजाने को भी आज़माने की अक्ल कहां से लाते ? नहीं रहा आज वो ज़माना, फिर भी एक सुकून है, यारीयां दिल में है कायम, इसका यकीन है, जिंदगी के कारोबार में, खुशी-रंज से सब परे रहें, दुआ है, तूफानों में भी, कागज़ की नाँव उनकी चलती रहे... किताब का आखरी पन्ना देखते-देखते जब भी आए, कोशिश रहे मेरी, ईश्वर यारी सबको सिखलाए, कि छवीं ऐसी बनाओ, जब किसी के करीब आओ, उससे मिलत...