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Showing posts from August, 2020

Yaariyan

मेरी किताब का वो सबसे हसीन किस्सा है, जिसमे कुछ, यारों के बारे में लिखा है, लड़कपन की उम्र से निकले थे सब घर से दूर, फिर सांज आज जब घर लौटे, थकना भी एक हिस्सा है... नहीं होती अब लंबी फोन पर उनसे बातें, फुर्सत की कमी, से नम होती हैं आँखें, यादों के खत लिखकर ही पूछ लेते हैं हाल-चाल, भागते-दौड़ते दोस्तों से पूछने को ना रहे कोई सवाल... क्या हुआ अगर, जो दुर्मिल अब ताल्लुकात हैं, झुर्रियाँ और सफेद बालों में उलझी, कई अनकही बात हैं, एक ज़माना था, जब सारे तितलियों के दिवाने थे, सिर्फ पागलपन ही नहीं, प्रेम के भी फसाने थे... कुछ दर्द अपनाते, कुछ अपना सुनाते, बातों बातों में, अपना-पराया भूल जाते, हँसकर यूँही घंटो कर ली बातें, अंजाने को भी आज़माने की अक्ल कहां से लाते ? नहीं रहा आज वो ज़माना, फिर भी एक सुकून है, यारीयां दिल में है कायम, इसका यकीन है, जिंदगी के कारोबार में, खुशी-रंज से सब परे रहें, दुआ है, तूफानों में भी, कागज़ की नाँव उनकी चलती रहे... किताब का आखरी पन्ना देखते-देखते जब भी आए, कोशिश रहे मेरी, ईश्वर यारी सबको सिखलाए,  कि छवीं ऐसी बनाओ, जब किसी के करीब आओ, उससे मिलत...

Farebi

एक सवाल फिर उठा, मेरे ज़ेहन पर, ढूँढते रहे इश्क हम, समंदर की गहराई पर, पूछें हम खुदा से, मिलेगी वफ़ा हमें कहाँ पर, इत्तेफाक की बात है, वो मिली फरेब की जुबां पर.... कुछ समझ नहीं आता, फेरबी मुहब्बत से कैसे निकलें, काबिलियत है तेरी, सारी साज़िशे बेअसर निकले, खता भरे प्यार की, कैसी इनायत हमपर हुई, तोबा किए हम, तेरे इश्क से मुझे हरारत हुई.... कोशिशें बहुत की, फरेबी परिंदे का शीश महल तोड़ दूँ अरमानों का घर, खयालातों से मोड़ दूँ, कहा मुझसे परिंदे नें, ना बता, मुझे जाना किधर है.... टूटे भी अगर पंख मेरे, तेरा आसमान ही मेरा घर है....

सिलवटें

आज फिर सुकून की नींद की कमी सी है, बिखरे सितारों की गर्दिश में, मेरी रात फिर थमी सी है... तेरी आगोश में बुझी थी मेरी, सुलगते ख़्वाहिशों की प्यास, तेरे प्यार करने की रवायतों से, मुझे शिकायतें सी हैं... अपनी कमीज़ों में तेरी खुशबू जो महफ़ूज रखें हैं, तेरे नजदीक होने का एहसास दिला देते हैं... अनगिनत लोगों के बींच, याद हैं मुझे तेरी गहरी आँखे, तेरी मुहब्बत मुझ काफ़िर को, सजदे में झुकना सिखा देते हैं... तुझे भूलने का हुनर कमबख़्त सीख जाते हम लेकिन, मेरी चादरों की सलवटों में, तेरी सांझ बुझी-बुझी सी है... बेशक बदनाम हो जाएँ हम, तेरे जिक्र का जाम पीते हुए, क्या करें? तेरे दीदार बिना मेरी महफ़िलें, रुकी-रुकी सी है... Dr. Shruti Nabriya

Chingaari

कम तेल में पिरोकर, मेरी लौ को सांसे मिली, हवा से मिली पनाह, इसे बुझा ना दे कहीं.. झुका देती है वहीं मस्तक, हवा का रुख जहाँ बदले, धीमी-धीमी बस जलती रहें, ख्वाब इसके बुलंद नहीं... शुक्र है खुदा का, जो अंधेरा गहरा था, चिंगारी की किरनों नें, रात न आने दी... कंपकपाते हुए हाथों में, थामी हैं मैनें लौ, बहकी अगर इसकी नीयत, मुझे जला ना दे कहीं ....

Benaam

कोशिशें, तकदीर के आगे कम पड़ गई, मेरे दिल और दिमाग की लड़ाई सुलगा गई, वक्त बदला, धुंधली हुई ऐसी भी परछाईयां, समझा जिसे रिश्ता, वो केवल ताल्लुकात रह गई ... अगर मिल जाता, एक और मौका जिंदगी से, कुछ खामोशी और, अपने लफ्जों में घोल देते हम, शब्दों की नाराज़गी, मन में न लाने देते, इस दो-तरफा किस्से को, एक तरफ़ा न होने देते हम... आबरू बचीं रहती, उस खिलते गुलाब सी भावनाओं की, हासिल ना करते, तो उसकी खुशबू महफ़ूज रख पाते हम, भूल गए थे, समय आनें पर, काँटे भी अपनाने होंगे, अच्छा होता अगर, इस रिश्ते को बेनाम रहने देते हम....

Panchi

वो आए बड़े यकीं से, हम बेखौफ़ से हो गए, वफा समझे जिसे, ज़लज़ले में झोंकते चले गए, हमसे हमारा इरादा ना पूछों दोस्तों, हुनर तो था संभालने का, फिर भी गिरते चले गए... आंधी ऐसी चली, आंखों पर धूल झोंक कर, क्या मिला उसे भला, परिंदे का घर उजाड़ कर, पेड़ की टूटी शाखा संभाले, या खुदको कौन बताएं ? पंछी तो आते ही हैं दुनियां में, अपने पंख लेकर... कहतें हैं तूफान के बाद बारिश ठंडक लाती है, लेकिन कुछ नमीं, धीरे से आंखों में दे जाती हैं, बेअसर रही वफा का हम भी जश्न मनाएंगे, भींगे नयनों के अश्कों को, बिखरी ज़ुल्फों से छुपाएंगे...

Fariyaad

मुझे अब खुद में रहने दो, ज़मीन पर बैठी हूँ, सितारों के सपनें देखने दो, दिलासा क्या देगा, मेरे ख़्वाहिशों को बुनियाद, छोटे उजाले तिनके में, मेरी रौनकें ढूँढने दो... चारों ओर दिखे बस, समंदर मुझे, कुछ कतरा पानी का, आखों में भर लेने दो, अगर मेरे अश्कों ने, एक पल भी हसाया होगा उसे, आँसुओ के दरिया को, बिना थमे बहने दो... गम इसका नहीं की, ख्वाब झूठे देखें हमने, बिना किसी वादे के, इंतजार में मुझे रहने दो, उम्मीद तो तब होती है, जब जिस्म से ताल्लुक हो, दूर रहकर उसे भी, मेरी रूह का इम्तिहन लेने दो... लफ्ज़ मेरे सारी बातें बयां नहीं करते, मुझे अपनें सन्नाटों में चुप रहने दो, एक दिन कफ़न में खत्म हो जाएगी मेरी जिंदगी, दुआ रहेगी खुदा से, उसे फरियाद में सांसे लेने दो...

S for Society

समाज के नाम पर मैनें हर ख्वाहिश को दबाया है, रिश्तों को ना आज़मा पाए, जिंदगी को दांव पर लगाया है, ऐसा मैं खोया तुझमे, मेरी अस्थियां भी ना मिलीं, रीति रिवाजों के बिस्तर में, मुखौटों की चादर दिखीं... धिक्कार है तुझपर, जो तूने मेरा अस्तित्व छीना, अपनी ईर्षा की हवस में, न दिया मेरे मन को जीना, कहूँ किसे, ये बेडियाँ मैनें ही तुझे दी हैं, जिसकी जकड़न नें मेरे पंखों को लहू-लुहान की हैं... दीए की रौशनी तू ले गया, छोड़ गया पैरों तले मेरे अंधेरा, संसार की गोद में, रह गया मेरा ह्रदय अकेला, सभ्यता का लिबास, मैनें झूठ में लिपटा पाया है, संस्कृति के ढोंग में, इंसान ने दुर्बलता छुपाया है... जब होगा एक दिन सवेरा, तब तुम देख पाओगे, कैदियों की हसीं के भीतर, डर की तड़प पाओगे, माँगेंगे खुदा से एक और जिंदगी, की समाज की बंदिशो से छूट सकें, उसके मन की तो कर ली, इस बार खुद की मर्जी से जी सकें........

Intezaar

कभी-कभी मेरे समझ आता नहीं, मेरे दिल को चाहिए क्या होता है ? चैन पास है मेरे कभी, कभी है बेचैनी, इंतजार के सिवा, क्यूँ कुछ नज़र आता नहीं ? वक्त ने कुछ तो मेरे लिए लिखा होगा, एक बार ही सही, मेरा नाम कहीं लिया होगा, इतना तो खुदगर्ज़ नहीं हो सकता वो किसी के लिए, भरे बादलों कि प्यास देख, खुदा भी कभी रोया होगा... अकेले सिर्फ हम ही नहीं, इतना समझ आया है, बहुत कम हैं यहाँ, जो गहरी नींद सो पाया है, साँसो की गिनती कर भी, बेवजह होगी, कौन जीने का मकसद यहाँ, पूरा कर पाया है ? राह अकेली है, अकेले ही तय करनी होगी, मंजिल कि तलाश, अब मुझे यहीं रोकनी होगी, लम्हा कैसा भी हो मगर मेरा तो है, मुकद्दर छल करती है, कभी मेरी होगी, कभी न होगी....

Mere hone ka yakeen

यह समां फिर पहले क्यूँ जिंदगी में ना आया ? जिसने मेरे होने का मुझे यकीन दिलाया ... भीड़ में तो खुशी से कट रही थी मेरी जिंदगी, आज ना जाने क्यूँ अकेलेपन की गहराइयों में मैैनें सुकून पाया ? अब तक बीतें गमों से, उभर पाना जो लग रहा था नामुमकिन, आज मैनें मेरा मन, समुद्र सा बहुत विशाल पाया... छोटी लगने लगी हर वो खुशियाँ और निराशा, जब पत्तियों के सरसराने की गूँज से, मैं शीतल से भर आया... बंटे हुए से जो लग रहे थे मेरे जिस्म और अंतरात्मा, किरनों और फूलों के रिश्तों ने, गलतियों का मेरे एहसास दिलाया... तब समझे, मुझसे ही तो है, ये दिन, संध्या और रजनी, कठिनाइयों के बावजूद, अपनी धुन से मैं जुड़ पाया... आवारा है, चला जा रहा है मेरा सफ़र, आख़िर दिल के सन्नाटों ने, ज़ख्मों पर मेरे मरहम लगाया... ना रहा अब कोई दर्द, ना मिला कोई हमदर्द, कोई और नहीं, सिर्फ मैं हूँ, खुदको मैनें जिंदा पाया... Dr Shruti Nabriya

Trushna

आज गम ने भी मेरा हाल, ठहर कर पूछ ही लिया, मरी हुई तृष्णाएँ भी मुझे, एक टूटी काठी सौंप गया; इतना तो सिखा जाता, बिखरे अँधेरों में चलते कैसे हैं? अपनों के बीच रहते हुए भी क्यूँ? मेरा दिल और कमज़ोर हो गया... दिल भी अब मेरा, आँसू छलकानें से कतरा रहा हैं; वक्त एक बार फिर, कागज़ की कश्ती ही मेरे लिए ला रहा है; दरिया पार करनें की फिर भी बहुत कोशिश की मैंनें, अंबर फिर पानी बरसा कर, बीच मझधार मुझे डूबा रहा है... नींदे विदा कर भी, मेरी आँखे क्यूँ नम होती नहीं ? दिल को भी क्या अब मुझसे कुछ हमदर्दी नहीं ? रूमाल आतुर हो चले अब, अश्कों से भीगने के लिए; पर मेरी जिद्दी नज़रे स्तब्ध उन्हें देखतीं रही... खामोश हूँ मैं या बेचैन, यह समझना नामुमकिन है; है कमी काँधे की, या अकेलेपन की दस्तक है? तनहाइयों में भींगा एहसास भी, रहम को पुकारता नहीं; सहमे हुए ह्रदय को भी क्या अब, मेरी सहमति की जरूरत नहीं ?

Purani Jeans

मैनें कहा वक्त से, तू आगे चल, कि कुछ देर मैं यहीं ठहरना चाहती हूँ ; तेरी बदलती गति पर, कुछ गौर फरमाना चाहती हूँ ; बढ़ते वक्त में बहुत कुछ पीछे छूट गया है ; उनपर फिर एक नज़र डालना चाहती हूँ ... एक पुराना छोटा घर, धुँधला सा याद है; छोटी सी रसोई, मेरा बिस्तर भी वहीं पास है; दीवारें थोड़ी फिर भी नई है मगर; बारिशों में गलती हुई छत का, अब भी एहसास है... और माँ की कुर्बानियां मैं कैसे भूलूँ ; जिसके ममता के आँचल नें, मुझे लोहे सा बनाया है ; अपने आँसू छुपा कर, हमें हर पल हंसाती रही; हजारों गलतियों पर भी, जिसने माफ करना सिखाया है ... चंद ही सही, पर खास हैं मेरे ऐसे दोस्त; जो कभी सीधी राहों पर चलने ना दिए; केमिस्ट्री की हद देखी मैनें पागलपन से; और केवल गल्तियों की प्रोबॅबलिटी सीखा किए... ऐसी भी बातें हैं जिसे मन याद नहीं करना चाहती ; कि कुछ दुश्मनी मैनें भी पाली हैं ; कैसा वो कारवां भुलाएँ नहीं भूलता; बेईमानी की आदतें मैनें दुश्मनों से ड़ाली हैं ... एक समय, मेरे जीवन में ऐसा भी आया ; जब मैंने खुदको बहुत अकेला पाया; तब समझ आई मुझे, रिश्तों की एहमियत ; अटूट बंधन भी मेरे, किसी काम ना आया... जाते हुए...

Kitaab ka woh Phool

किताब को वो फूल सिरहाने तुझे याद कर, रातें काँटी हैं; करवटों में महकती यादें, सपनों से बाँटी हैं; मुहब्बत भरी किताब पर, आज जब मेरी निगाहें पड़ी; बरसों बाद मिली उसमें, गुलाब की वो कली... याद आई मुझे, छुअन तेरी, और हाथों की नर्मियाँ; गुमसुम सी हसीं, और हसरतें थी दरमियां; तेरा यूँ ख्व़ाब बनकर, अपना एहसास जता जाना, मेरी नींदे उड़ाकर, हर दफे परेशान कर जाना..... वो पेड़ के नीचे बैठे, मैं और तुम; थरथराते हुए होंठ, ख़्वाहिशें गुमसुम; नशे सी हवा का, हमारे बदन को छू जाना; बिन कुछ कहे, जाने क्या क्या कह जाना....... फिर एक दिन, उठा मन में एक सवाल; रहा न जाए, कैसे कहूँ दर्द-ए-हाल; जब उसने दी मुझे, अपने गुलाब की निशानी; बिना कुछ सोचे, कुदरत से लढ़ने की मैंनें ठानी .... पर मैं नहीं, तकदीर लिख रही थी मेरी लकीरें; समझौतों की मुझपर, पड़ गई कैसी जंजीरें ? रंजिशें कहूँ किसे, अलग हो रहा था मेरा मंज़र; हौसलों के समंदर में, उठ रहा था बवंडर.... तो क्या हुआ, पूरा ना हुआ अगर इरादा; काटों भरी राहों पर, चलने का तो ना किया था वादा? फिर भी हर लम्हा हम, तुमसे दूर बढ़ते चले गए; साँसें भी ना रूकीं, न जाने कैसे जी गए.......

Main kahin nahi hoon

किस्तों में जीना नहीं, मुझे पूरा मर जाना है, अपनी धुन में हूँ मैं, आख़िर मैंने माना है, मुझसे खेलो मत, मैं हर पल झुलसती रहीं हूँ, मुझे ढूंढना नहीं, मैं कहीं नहीं हूँ... यह कैसा नकाबपोश समाज ने लपेटा है, हँसते चहरे एक झूठ का मुखौटा है, जंजीरों में कैद रहो, मैं तुमसी नहीं हूँ, बेडियाँ तोड़ कर मैं जा चुकी हूँ... रिश्तों का मोल भला किसने समझा है, सात फेरों से नहीं, यह मन से जुडता है, हाथ ना आऊँ मैं, हवा सी हूँ, महसूस करना चाहो तो आस-पास ही हूँ...

Dayeraa

मुकद्दर से हाथों की लकीरें हार ज़ाती हैं, मेरी तस्वीरें मेरा मजाक बनाती हैं, तहरीरें बदलने की कोशिश बोहोत करती हूँ, वियोग ही पीछे पीछे चलीं आती है... जितना भी सिमटने की आरज़ू करूँ, उतना ज्यादा बिखरती जाती है, जिस्म को काबू में कैसे रखखूं, वही मुझसे दुश्मनी करना चाहती है... चलो तकदीर का फैसला अपना भी लूँ, जिद्द विद्रोह करना जानती है, दायरा कितनी बार भी बना लूँ, रेखाएँ पीछे खिसक आती हैं... आखिरकार खुद से फिर दोस्ती करूँ, फ़ितरत छल कर जातीं है, खाली रातों को कैसे बिताऊँ, तेरी नज्में चादर बन लिपट जाती है... अपना प्यार किसी और से क्या बाँटूं, भूली गजलें याद दिला देती है, लफ्जों से बातें पूरी कैसे करूँ, खामोशी मेरा गला घोंट जाती है....

Jaago

चंद लम्हों को ही हम समेट पाते हैं, बाकी रेत हाथों से फिसल जाती है, कुछ ही बारिश की बूूँदें भिगा पाती है, और तुम सोचते हो कि; बेशुमार शोहरत हासिल कर ली है... अफरा तफरी में सब मस्त हैं, केवल हवस से सब सशस्त्र हैं, दौड़ रहा रगों में पानी का रक्त है, शरीर की ठंडक मालूम नहीं कि; कहते हो आत्मा का झुलसना सख्त है... यूहीं आते हैं और चले जाते हैं, पसीने की कमाई का मजाक बनाते हैं, मकान, दौलत ही तो हासिल कर पाते हैं, बिस्तर पर पड़ते ही नहीं और; गहरी नींद में कम सो पाते हैं... जीवन नहीं किन्तु मसकरी है शायद, इसलिए बोहोत कम समझ पाते हैं, जीवों का वक्त फिजूल गंवाते हैं, अफसोस भी करने आया नहीं कि; फिर मृत्यु लोक में जन्म लेने आ जाते हैं... डाॅ. श्रृति नाबरिया

Kori Yaadein

कुछ पन्ने जिंदगी के कोरे रहे तो अच्छा है, अनछुए कोमल शीतल से, मुट्ठी में बंद हैं वो यादें, मंसूबे कामयाब न हों तो अच्छा है.. अल्हड़पन की मस्तियाँ हैं उन पन्नो में, भावनाओं की छवियां भी हैं उसमें, बचपन ज़हन में कैद रहे तो अच्छा है, आपकी नजरों में थोड़ा शरीफ रहें तो अच्छा है.. युवावस्था की छवियां भी याद हैं, भीनी भीनी खुशबू सी सीने में, दर्पन महकाती रहे तो अच्छा है, प्यार का कोहरा छाया रहे तो अच्छा है.. इन पन्नो में रिश्तों का नाम नहीं है, चेहरा वो अब अनजान कहीं है, मासूमियत यूहीं उसमें भरी रहे तो अच्छा है, सदा मेरी क़समें उन्हें याद रहे तो अच्छा है.. खूबसूरत हादसे जीवन में घट जाते हैं, बार-बार दिल को रुला जाते हैं, अब जरा आगे बढ़ जाएँ तो अच्छा है, पिछली बातें भूल जाएँ तो अच्छा है...

Karz

हर्फ-दर-हर्फ सोच कर लिखती हूँ की कहीं कोई गलती ना हो जाए; सवाल तो पहले ही बोहोत खड़े हैैं , मेरी मुश्किलें और ना बढ़ जाए... घर की खिड़कियों से ताकती रहती हूँ, अनचाहा न दरवाजा खटखटा जाए; कुछ हासिल करने की आढ में, हम खुदगर्ज़ ना हो जाएँ ... टूटी हुई छत भी आसरा देती है, चाहे वो कितनी पुरानी हो जाए ; भावनाओं की लहरें निश्चित नहीं , बहा कर न जाने कहाँ ले जाए ... आरजूओं सेे मुंह मोड़ा नहीं जाता, आदतें भारी पड़ जाए; किश्तों में भी चुकाया नहीं जा सकता , जिंदगी का कर्ज बढ़ता चला जाए.... डाॅ. श्रुति नाबरिया

Maa

Tere गाँव ki ek khaas baat hai, Ki yahan hamein koi jaanta nahin Gumshuda se aate hain teri galiyon me, Bheed me bhi koi pehchanta nahin.. Mann सन्नाटे में dooba rehna chahta hai Mehfil main akela rehna chahta hai Sona chahte hain वृक्ष की छाँव me, धूप पाँव सेकना छोडती nahin.. Poorane raaste hain jo uski ओर खिंचते hain, Aur vo बूढ़ी आँखों के चूल्हे , jo roti सेंकते hain, Agar isi गाँव mein, meri माँ na hoti Hum yahan kabhi aate nahin..

Choti Baatein

Ek umra ke baad dosti nahi hoti Log kya sochenge? Yeh chinta nahi हटती  Kis kis se kahen hum shareef hain Sabko manane ki himmat nahi hoti Kadam utha ne se pehle bohot sochti hu, Sabki aisi takdeer nahi hoti, Lagne na diya hota koi daag tujh par Jo teri फिक्र na hoti..

Safar

Khabar hai mujhe, tum paraye ho gaye, Waqt aage badh gaye, hum kahin kho gaye, कोसा humne apni तकदीर ko bohot, Dhere dhere se संभलना सीख gaye.. Kehte hain log, hum गुनाह kar gaye, Tumhara socha; apna bhool gaye, Mohabbat se hum majboor the bohot, Ishq ke rog se zaar zaar ho gaye.. Aaj phir tum kyun टकरा gaye, Bisri baat kyun yaad dila gaye, Tumhe bhool jane ki koshish ki bohot, Sukhe patte ki tarah bikharte chale gaye .. Tere gum me mere makaan khali reh gaye, Chaar devaar aur ek hum reh gaye, Mere bina, tum khush to hoge bohot, Aur tum kehte ho, hum; matlabi ho gaye.. Dr Shruti Nabriya

Khamoshi

Kal jab tum milne aaye the Shabdon ke saath khamoshiyan bhi laye the Hasi me kuch dabi hui thi koi baat Shayad tum bhi yeh, na jaan paye the Par main samajh gaya ki tum kya kehne aaye the Aakhon ki baaton ko zubaan dene aaye the Phir bhi khush kyun ho gaya mera mann Meri gustakhiyon ko sazaa dene aaye the Isi khwahish me zindagi guzaar doon Agar tum saath nibhane aaye the...

Adhura Chand

Likhte likhte samay ka pata na chala, Khubsurat reshum si sandhya ka thikana na raha, Raat jo itni haseen hai kitne sitare samete hue hai, Aapni chunari ki baahoon me chaand ko bhare hue hai, Yun oojhal hota chaand kuch keh kar bhi nahi keh paya, Aapne hooton ki baat, hooton tak na laa paya Abhi aur rukna hai use sahi samay ke liye Chaand ke saath chamakti hui chaandni ke liye Kehta hai, sitaaren to bohot hai, par us jaisa koi bhi nahi, Rehte hain sab saath par nibhaane waala koi nahi, Aisi ho chaandni jo chaah kar bhi alag na ho paye, Jo kho jaun main kahin aakaash me toh vo bhi naaraaz ho jae, Duniya na pukaare kabhi inhe do alag naam se, Nahi hai wajood jo radha na ho shaam ke, Agar ho saath toh raat me ujala ho jae, Bas haste haste yun hi samay kat jae, Liya tha kalam bas kahi kehna tha, Likhte likhte samay ka pata na chala.. By Dr Shruti Nabriya.

One Day!!

My soul has started speaking it's own language,  And I am sure, it's free from all bondage,  There comes the time, when my skin and flesh are no more, And one day, astonishing light shines up from my core... Try if you can, don't try to find me my soul says, I am beyond words, where in your heart silence stays, See what can't be seen and hear what is unsaid, Somehow, somewhere, someway, when you find me, May be that will be the day....

ठहरना चाहूँ मैं अगर

कदम मेरे ठहर जाते हैं अब कभी कभी, फिक्र की धूप को, परछाई से छुपाती हूँ कभी कुछ देर सुकून की साँस भरूँ, अगर मैं राहों में,  तो ऐ जिंदगी, तुझे कोई ऐतराज तो नहीं ... ना होंगी मुझे शिकायतें, अगर तू मेरे लिए ना रुकें, ना रहेगा कोई गम, जो कुछ रिश्ते अधूरे से रहे, बस जब रात की बाहों में, थकान मिटाना चाहूँ मैं , सुबह की आगोश, सवालों से ना घेरे मुझे .... सोंचती हूँ, कि गुम हो जाएँ मेरे शब्दों रचना, कि अब जवाब देने से कतराती हूँ मैं,  महज़ वादों का क्या है, जुबां से कभी भी फिसल जाए, रेत से फिसलते लमहों में, खुदको गिरने से बचाती हूँ मैं ..

Pinjara

मुझे तुम आसमान की एक झलक दिखलादो,  कहाँ हूँ मैं, कैसा यह गगन,  बुझे बुझे चांद तारे, टूटे कितने कंगन, फूलों की ये खुशबू, नाराज़गी से मुरझाई प्रिये ... सहमी-सहमी सी माँ की झोली जलते दिए की लौ तूफ़ानों से भिडी, कौनसे शूल ह्रदय में चुभ से रहे, कुछ भी नहीं सही, यह तू जान प्रिये ... तबाह करके धूप की किरनें,  हिंसा की मिट्टी से बीज खिले, कैसे निर्मित हो अहिंसा की भूमि,  अश्रुओं की बरसात के हैं काल प्रिये ... भवन हैं सारे चार दीवारों में बंद घुटती हुई सांसे, उदास आंगन कोनों में, सिमटा हुआ मन, सारे रंग दामन से बिखरे हुए, उलटी चमन में बेह रहीं हवा के, कैसे ये निशां प्रिये ... दो स्वाद नशे के मिल जाए फिर कहीं से, खूंटी से खोलो मेरी गर्दन, पास है कुआँ, खबर मिली कहीं से , प्यास बुझा लेने दो, भर लूँ वो पानी सुराही में , मरघट से दूर, एकांत जाने का मेरा प्रयास प्रिये... बुद्धि से घायल, दिल भी मेरा घायल, प्रेम की लालसा से सारे हैं बेहाल प्रिये कल्पना है ये या हकीकत न जानें,  स्वयं को ढूँढने की, रही बस अभिप्षा प्रिये ...

Untitled

I wish i go back in life.. With Some pause buttons in my life, Moments lost, which got carved in memories forever, Some special ones, with whom life once spent together... Long b ack i see; Where once everything seemed alright, Reminisces of all the wrong, being pointless felt delight, Wandering like wind, journey without destination was great, When i wished, i wouldn't regret the chances we'd take .. Angels , very few ones😉 in thoughts are still precious for me, For, they made me smile and stood right beside me, How my faulty thoughts , they understood in less than words ? Kin; like cool breezes, and we laughed until tears... I wish i go some time back, sit with cushions, But seems, life's too short for delete buttons, To erase sadness, and rub away some feelings, Begin again with a start, create lasting memories... Still, i have a flower, which is yet to blossom, In my own garden, have fragrances and a slogan, A magic awaits, where life is altogether different, Believin...

Naadaniyaan

अपनी नादानियाँ देख, कुछ अपने बारे में सोचूं, तो समझ सकूं, जिंदगी के बदलते मायने, पतली सी डोर से टिके हुए रिश्ते, तो कभी, तनहाइयों में साथ खड़ी मेरी राहें । पतझड़ आई कभी मेरे हिस्से, ख्वाब टकराए हकीकत से कभी मेरे, हंसी में ही उड़ा दो, मेरी मुसाफ़िर सी फ़ितरत समझ लो, कोई तलाश थी शायद, मेरी तड़प को ही मेरा सुकून समझ लो। हुनर तो था, मेरे बदलते अंदाज़ को महफ़ूज रखा, उड़ने में क्या बुराई थी? ज़माने को गुमराह रखा, लोगों को कभी गलतफहमियों से बाहर आने ना दिया, परछाई को भी कभी उसके नाम का जिक्र करने ना दिया। अधूरी छोड़ दी है अब, कुछ शायरियाँ, चंद कवितायें, थक गयी हैं कलम, पन्नो पर उनकी जगह मुनासिब कैसे बनाएँ? किताब भरने चली, उम्र की झुर्रियों से मेरे, ख़्वाहिशें ही तो हैं, पूर्णिमा की रात का पूरा चांद कैसे बनाएँ !!

Duaa

गुनहगार जबसे बना तू मेरे, समझ नहीं आता कि, तुझे क्या सज़ा दूँ,  नफ़रतों से गुनाह कम तो ना होगा तेरा, ख़ुदा से शायद, तेरे लिए कुछ रहमत मांग लूँ .. फिर भी, तू रोज़ एक नयी खता करना, और मेरी नियत तुझपर, फिर मेहरबान होगी, हिसाब कैसे लेगा उपर वाला भी तेरा ? मेरे इश्क के कलम से, रोज तेरी गलती साफ होगी ... एहसान मान लेना, तू भी मेरे तजुर्बों का, तू तमन्नाओं को मेरे, कोई इलज़ाम ना देना ... बेवजह नहीं था कुछ, खुदगर्ज़ ही कह लो मुझे,  दुआओं में तू भी कभी... मेरा जिक्र कर लिया करना...